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(लेख़क कवि : मास्टर मोटाराम पंवार)
मां बाप की जान बेटियां
केवल औलाद नहीं,सम्मान भी बेटियां
एक नहीं हैं छ:सात हैं बेटियाँ,
मगर इस परिवार की नाक हैं बेटियां!
"दादा" की चिन्ता सता रही थी,
मगर "पापाजी" भी जब छोड़ चले,
"मां"की ममता ने पाला पोसा जिनको,किसे सुनाये शिकवे गिले?
दुनिया सुख में भीड़ जुटाये,यह पुराना दस्तूर है,
सुख के साथी छूटै सब,दुख दुविधा भरपूर है!
ठोकर पर जब ठोकर लगी,पली अभावों के छांव तले,
सोचा था भार नहीं बनेगी ये बेटियां,
पापा के सदमे से बिखरा था परिवार,बसा अभी आसमान तले,
जो आसरा कभी मिलेगा,वे भाई तो अब स्कूल चले,
सब मुसीबत में साथ देंगे,ऐसे दुनिया में कहां लोग भले?
पुराना हुआ दीदी का दीदार और जीजी का प्यार,
वक्त ने भी पासा पलटा,जमीनें सूखी और अकाल की मार!
सुख आयेगा,दुख जायेगा,परिवार की आधार हैं बेटियां,
उम्मीद के पंख लगे रहेंगे,दादी और मां का है ये प्राण बेटियां!!
कुछ अपने यहां,तो कुछ चली ससुराल बेटियां,
"पंवार"दिलाता तुम्हें भरोसा,आज नहीं कल की भी सरताज बेटियां!!
✍️मास्टर-मोटा राम पंवार पनावड़ा
मानवीय संवेदनशीलता परोसती बेटियां,जिसकी खबर आज हमें भी सोचने को मजबूर करती हैं!हमारा भी दायित्व बनता है कि हम समाज की इन बेटियों के पढने लिखने या हर सहयोग में भागीदार बनें!यह हमारा फर्ज भी और बाबा साहेब का कर्ज भी!
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